किसान आंदोलन में चढ़ रही अब किसानों की आहुति, हो रही मौतें
नई दिल्ली। तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए 26 नवंबर से चल रहे किसान आंदोलन में अब किसानों की आहुति चढ़ने लगी है। कोई किसान आंदोलन के समर्थन में सुसाइड कर रहा है तो किसी की अन्य हालातों की वजह से मौत हो रही है।

सोनीपत में किसान आंदोलन में शामिल एक और किसान की रविवार को मौत हो गई है। मृतक किसान की पहचान कुलबीर (45) के रूप में हुई है। वे सोनीपत के गोहाना के गांव गंगाना के निवासी थे।
किसान कुलबीर की कुंडली बॉर्डर पर पारकर मॉल के पास आंदोलन में जान गई है। हालांकि मौत के कारणों का खुलासा नहीं हो पाया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही वास्तविक कारणों का पता चल पाएगा। मौके पर पहुंचकर पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।

कृषि कानून वापस करवाने को लेकर भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के बैनर तले टीकरी बॉर्डर पर चल रहे धरने में शनिवार को शामिल होने पहुंचे बठिंडा के 18 वर्षीय युवक की हालत बिगड़ गई। रोहतक पीजीआई में शनिवार देर शाम उसने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। मृतक की पहचान जश्नप्रीत सिंह (18) निवासी गांव चाउके जिला बठिंडा के तौर पर हुई है।
ये हैं वह तीन कानून, जिसके विरोध में जा रही है किसानों की जान
द फ़ार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फ़ैसिलिटेशन), 2020 क़ानून के मुताबिक़, किसान अपनी उपज एपीएमसी यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी की ओर से अधिसूचित मण्डियों से बाहर बिना दूसरे राज्यों का टैक्स दिए बेच सकते हैं।
दूसरा क़ानून है – फ़ार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फ़ार्म सर्विस क़ानून, 2020। इसके अनुसार, किसान अनुबंध वाली खेती कर सकते हैं और सीधे उसकी मार्केटिंग कर सकते हैं।
तीसरा क़ानून है – इसेंशियल कमोडिटीज़ (एमेंडमेंट) क़ानून, 2020। इसमें उत्पादन, स्टोरेज के अलावा अनाज, दाल, खाने का तेल, प्याज की बिक्री को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर नियंत्रण-मुक्त कर दिया गया है।
सरकार का तर्क है कि नये क़ानून से किसानों को ज़्यादा विकल्प मिलेंगे और क़ीमत को लेकर भी अच्छी प्रतिस्पर्धा होगी. इसके साथ ही कृषि बाज़ार, प्रोसेसिंग और आधारभूत संरचना में निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा जबकि किसानों को लगता है कि नए क़ानून से उनकी मौजूदा सुरक्षा भी छिन जाएगी।
इससे पहले दिल्ली के सिंघु, टिकरी, गाजीपुर और चिल्ला बॉर्डर समेत बुराड़ी आदि जगहों पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने दिल्ली की सीमा पर ही नया साल मनाया। उनका कहना था कि हम तो चाहते हैं कि सरकार हमारी बात मान ले लेकिन सरकार तीनों कानून वापस नहीं ले रही है, इसलिए हम यहीं डटे रहेंगे। रविवार को इस आंदोलन का 39वां दिन है। इन 39 दिनों में आंदोलन कर रहे 50 से ज्यादों किसानों की मौत होने की बात सामने आई है।
बता दें कि कृषि कानून वापस करवाने को लेकर देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर स्थित गाजीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर पर 26 नवंबर 2020 से ही किसान डेरा डाले हुए हैं। वे तीन नये कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ-साथ न्यनूतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी समेत अन्य मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं।
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